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Tuesday, August 30, 2011

मेरी पहली शव यात्रा

शवयात्रा  में  भाग  लेना  एक  पुण्य  का  काम  माना  जाता  है ,
एक  दिन  हमें  भी  ये  सौभाग्य  प्राप्त  हुआ ,
बगल  का  एक  पडोसी  मृत्युलोक  को  प्राप्त  हुआ .


शनिवार  का  दिन  था  1 बजे  शव  यात्रा  चली ,
बदकिस्मती  से  स्कूलों  में  भी  छुट्टी  हो  चली .
तो  एक  तरफ  स्कूल  की  बस  दूसरी  तरफ  लडकियों  का  काफिला ,
इसी  बीच शव  सहित  हमारा  हुआ  दाखिला .
हमें  देख  कर  भीड़  बिदकती  थी ,
शायद  दोबारा  नहाने  से  डरती  थी  .
हर  कोई  शव  को  श्रधा   से  सर  झुका  रहा  था ,
थोडा  देर  से  बुलावा  आये  भगवान्  से  मना  रहा  था

रास्ते  में  शोक  प्रगट  करने  वाले  एक  से  बढ़  कर  मिले ,
मुश्किल  तब  हुई   जब  कोई  मेरे  परिचित  दिखे
एक  मित्र  दूर  से  ही  चिल्लाये ---brajeshssssssss
ये  क्या ssss हो  गयाssssss,
हमने  झल्लाते  हुए  कहा .... बेवकूफ sssss
बगलवालाssss..गया sssss
जाते  जाते  वो  अपनी  तीव्र  बुध्धि  का  परिचय  दे  गए ,
बोले -- हाँ  यार  सोच  में  पड़ गया  था ,
तुम्हारे  यहाँ  से  तो  जानेवाला  अभी  कोई  नहीं  था .
यह  सुनकर  हम  झल्लाते , कोई  और  मौका  होता  तो  उन्हें  बताते .

तो  सर  झुकाए  पुण्य  कमाने  हम  चले  जा  रहे  थे ,
3  बजे  से  पिक्चर  थी  छूट  न  जाए  घबरा  रहे थे ,

शव  को  जगह  जगह  रोक  कर  फोटो  लिए  जा  रहे  थे ,
फोतोग्रफेर  भी  कमल  का  था  ,
बोला  शव  का  सर  थोडा  उठाईये , पैर  थोडा  झुकायिए,.
हमने  कहा -- अब  कहेगा  मुर्दे  को  हंसायिये ....smile plz

हमने  कहा  लगता  है  हम  किसी  बारात  में  आ  गए  हैं ,
बगल  के  एक  बुजुर्ग  ने  कहा  -------
बेटा  यही  तो  है  आखरी  बारात,
तुम्हारे  समय  तक  विद्युत्  शवदाह  गृह  तैयार  हो  जायेगा .
कितना  अच्छा  होगा  3 घंटे  का  काम  आधे  घंटे ,
में  निपट  जाएगा .

इसी  नोकझोक  के  बीच  शव  को  अग्नि  को  समर्पित  किया  गया ,
शव  को  आखरी  श्रधांजलि  अर्पित  किया  गया .
मैं  अकेला  खड़ा  सोचता  रहा -
अपने   समाज  के  भी  अनोखे  रिवाज  हैं
पहली  बारात  में  आदमी  अग्नि   के  फेरे  लेता  है ,
आखरी  बारात  में  अग्नि  उसके  फेरे  लेती  है ,
पहली  बारात  के  बाद  वो  गृहस्थी  की  आग  में  जला ,
आखरी  बारात  में  वोह  आग  में  ही  जल   गया ,
आग  में  ही  जल  गया .................