शवयात्रा में भाग लेना एक पुण्य का काम माना जाता है ,
एक दिन हमें भी ये सौभाग्य प्राप्त हुआ ,बगल का एक पडोसी मृत्युलोक को प्राप्त हुआ .
शनिवार का दिन था 1 बजे शव यात्रा चली ,
बदकिस्मती से स्कूलों में भी छुट्टी हो चली .
तो एक तरफ स्कूल की बस दूसरी तरफ लडकियों का काफिला ,
इसी बीच शव सहित हमारा हुआ दाखिला .
हमें देख कर भीड़ बिदकती थी ,
शायद दोबारा नहाने से डरती थी .
हर कोई शव को श्रधा से सर झुका रहा था ,
थोडा देर से बुलावा आये भगवान् से मना रहा था
रास्ते में शोक प्रगट करने वाले एक से बढ़ कर मिले ,
मुश्किल तब हुई जब कोई मेरे परिचित दिखे
एक मित्र दूर से ही चिल्लाये ---brajeshssssssss
ये क्या ssss हो गयाssssss,
हमने झल्लाते हुए कहा .... बेवकूफ sssss
बगलवालाssss..गया sssss
जाते जाते वो अपनी तीव्र बुध्धि का परिचय दे गए ,
बोले -- हाँ यार सोच में पड़ गया था ,
तुम्हारे यहाँ से तो जानेवाला अभी कोई नहीं था .
यह सुनकर हम झल्लाते , कोई और मौका होता तो उन्हें बताते .
तो सर झुकाए पुण्य कमाने हम चले जा रहे थे ,
3 बजे से पिक्चर थी छूट न जाए घबरा रहे थे ,
शव को जगह जगह रोक कर फोटो लिए जा रहे थे ,
फोतोग्रफेर भी कमल का था ,
बोला शव का सर थोडा उठाईये , पैर थोडा झुकायिए,.
हमने कहा -- अब कहेगा मुर्दे को हंसायिये ....smile plz
हमने कहा लगता है हम किसी बारात में आ गए हैं ,
बगल के एक बुजुर्ग ने कहा -------
बेटा यही तो है आखरी बारात,
तुम्हारे समय तक विद्युत् शवदाह गृह तैयार हो जायेगा .
कितना अच्छा होगा 3 घंटे का काम आधे घंटे ,
में निपट जाएगा .
इसी नोकझोक के बीच शव को अग्नि को समर्पित किया गया ,
शव को आखरी श्रधांजलि अर्पित किया गया .
मैं अकेला खड़ा सोचता रहा -
अपने समाज के भी अनोखे रिवाज हैं
पहली बारात में आदमी अग्नि के फेरे लेता है ,
आखरी बारात में अग्नि उसके फेरे लेती है ,
पहली बारात के बाद वो गृहस्थी की आग में जला ,
आखरी बारात में वोह आग में ही जल गया ,
आग में ही जल गया .................