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Thursday, October 25, 2012

चुल्लू भर पानी

उसकी उम्र महज तीन साल की थी ड्रम के पीछे खड़ा दिख भी नहीं रहा था ,पर ड्रम पर उसकी कलाइया बड़ी निपुणता के साथ जादू बिखेर रही थी ! उम्र -7 साल नन्ही  सी बच्ची जिसे दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती ,बिजली की फुर्ती से नाच रही थी !....अद्बुत अद्भुत- इंडिया गोट टैलेंट - के मंच पर जब भी ऐसी प्रतिभाओ से रूबरू होता हू एक हूक सी उठती है जब महसूस होता है 40 साल बाद भी मैं कलाविहीन ही हूँ !इन नन्हे फ़नकारो की जादूगरी देख कर एक ओर जहा फक्र होता है वही  चुल्लू भर पानी में डूब मरने की इच्छा भी जन्म लेती है !पर हमारे देश में चुल्लू भर पानी इतना सहज मयस्सर नहीं है !सोचिये अगर सहज मयस्सर होती तो क्या अबतक भ्रष्ट  और पतित नेताओं की जमात डूब नहीं चुकी होती !दुनिया संवेदनहीन लोगो से मुक्त नहीं हो गयी होती !

बचपन से ही मेरी इच्छा बाँसुरी बजाने में रही कई बार बाँसुरी  खरीदी ,फूँक मार मार के फेफड़े फुला लिए पर बाँसुरी कमबख्त बजी नहीं !इस प्रतिभा का मैं निर्धन ही साबित हुआ !बाँसुरी तो बाँसुरी है सीखने  के लिए कठोर साधना करनी पड़ती है ,यह कोई सत्ता नहीं जो हाथ आते ही व्यक्ति को फरेब के सारे सरगम सिखा देती है मानो इस प्रतिभा का वह जन्मजात धनि रहा हो !सत्ता पाते  ही व्यक्ति गबन की दुनिया में पैर पसारने लगता है और जल्द ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेता है!क्या पक्ष क्या विपक्ष दोनों ओर असीमित प्रतिभा के दर्शन होते है !मैं ही मुर्ख रहा जो बाँसुरी बजाने  की सोची सत्ता बजाता तो अब तक मेरी  प्रतिभा निखर कर देश भर में मीडिया का भरन पोषण कर रही होती !

पर यहाँ तो अपना भरण पोषण ही अत्यन्त कठिन हो चला है कठिन क्यों न हो आखिर  हम 100 करोड़ लोग दिन रात मेहनत कर कुछ मुठ्ठी भर मंत्रियो और नौकरशाहों की अय्याशियों के  लिए धन उपलब्ध कराने  में जो लगे हुए है! मेहनत  मशक्कत करने से हमारे  खून का रंग पीला  और उनके खून का रंग नीला होता जा रहा है! हिन्दुस्तान के ये हुनरबाज बड़े ही सौभाग्यशाली है जो इनका सामना चुल्लू भर पानी से नहीं होता !मुझे तो कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है मानो चुल्लू भर पानी के देश से विलुप्त होने के पीछे इनका ही हाथ हो !

समस्या के जड़ में चुल्लू भर पानी ही है राष्ट्रहित में हमें इसे खोजना ही होगा,..........  मगर कहाँ?? 

Monday, October 15, 2012

दिल पे रख ले यार

वैज्ञानिक  सर जान गार्डन जिन्हें चिकित्सा के क्षेत्र  में अतुलनीय योगदान के लिए इस साल नोबल सम्मान दिया जा रहा है,जब वे स्कूल में थे तो उनके विज्ञानं के शिक्षक ने उनके कार्य को घटिया कहा  था और परीक्षा में सबसे कम अंक दिए थे और कहा था ---"यह समय की बर्बादी है और हास्यास्पद भी "!

आज जब चारो तरफ  उनकी चर्चा है ,बहुत ही सहेज कर रखे गए अपने उस रिपोर्ट कार्ड को उन्होंने मीडिया  को दिखाया ! सोचता हूँ रिपोर्ट कार्ड से भी ज्यादा उन्होंने  अपने शिक्षक की टिप्पड़ी को  सहेज कर रखा !

Monday, April 9, 2012

घर घर पहुंची पोर्नोग्राफी

एक अलसाई सी सुबह थी,
आँख  पूरी तरह  से  खुली भी नहीं थी! 
दरवाजे पर कुछ सरसराहट का स्वर आया, 
देखा ,अख़बार वाले ने अखबार सरकाया था! 
जैसे ही अखबार उठाने चला,
जोर का झटका लगा ,
नहीं  नहीं कोई दुर्घटना नहीं घटी थी
बात दरअसल यह है कि
अखबार के ऊपर पत्रिका इंडिया टुडे पड़ी थी 
और उसके कवर पेज  पर,
एक लड़की अधूरे वस्त्रों में खड़ी थी ,
ये तो बाद में पता चला उसकी तो  यूनीफॉर्म ही वही थी
मुहँसे निकला इट्स नॉट फेयर
अबे इंडिया टुडे है की डेबोनेयर!!

 पत्रिका पर लिखा था ----
दबे पाँव आपके घर घुसा पोर्न
मैंने कहा -ठीक ही है गुरु  क्या गजब ढाये हो ,
दबे पाँव ही तो आये हो
कवर पर सुश्री सनी लियोनि छाई  थी
कमबख्त दबे पाँव ही तो घुस पाई थी

मेरे लिए तो समस्या थी बड़ी  ,क्या बताएं ,
इस पत्रिका को घर में कहाँ रखे कहाँ छिपायें
घर में सत्तर वर्षीया पिता जी और  दो छोटे छोटे  चंगु मंगू
कबख्त पत्रिका देखते ही कहेंगे -हे राम नंगू नंगू
जब कोई जगह इन चंगु मंगू से महफूज नहीं दिखी
पत्रिका हमने गाडी में धर दी

पर , कहते हैं होइए वही जे राम रची रखा-
सारी योजना रह  गयी धरी की धरी
मेरी अनुपस्थ्ती में ,
श्रीमती जी गाडी ले कर चल दी
मैं निर्दोष  परिस्थिति से अनजान बैठा था
फटाक की आवाज हुई,श्रीमती जी ने पत्रिका मुझ पर फेका था
बोली- साहित्य मे रूचि रखते हो
और  गाडी में ऐसी पत्रिका पढ़ते हो
मुझसे तो बात ही  मत करना
अपनी सफाई बच्चो के आगे ही देना !

क्या कहूँ -बड़ी मनहूस घड़ी  थी,
फेकी हुई पत्रिका टेबल पर ही पड़ी  थी!
दुर्गति कुछ और होनी थी बाकी ,
पिता जी आये पत्रिका हाथो में उठा ली! ,
"घर घर पहुंची पोर्नोग्राफी" !
पत्रिका की पंक्तियों को दोहराया ,
और प्रश्न उठाया बोले -ये पोर्नोग्राफी क्या चीज है ?
मैंने कहा पता नहीं पढ़ कर बताऊंगा ,
वो बोले -पैसे लुटाते हो,
पत्रिका अगर पढ़ नहीं  सकते ,
तो फिर क्यों मंगाते हो !!

मैं अवाक् ,निःशब्द निरुत्तर ही रहा! जी में आया कह दू  साहित्य  की नाजायज औलाद है पोर्नोग्राफी पर संकोच वश कह नहीं सका! दो पीढियों के बीच खड़ा मैं सोच रहा  हूँ पिता पुत्र लाख मित्रवत हो कुछ विषय शेयर नहीं किये जा सकते !परिवार में पढ़ी जाने वाली पत्रिकाओं में ऐसी सामग्रियों को कवर पर छापने का क्या तुक है?मुझे लगता है पत्रिकाओ को भी A  और U का प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि  U  श्रेणी की पत्रिका  A श्रेणी में सेंध न मार सके !

पोर्नोग्राफी के लिए यूं तो मैंने घर के सारे खिड़की दरवाजे बंद कर रखे थे पर कुछ सुराख़ रह गए जिन्हें मैं बंद नहीं कर पाया ! सोचता हूँ कौन बंद कर पायेगा , जब आज हर हाथ में मोबाइल है और मोबाइल में इन्टरनेट ...                    .....,,,.....                                                                                                                                             ब्रजेश   

Wednesday, March 28, 2012

चंद लाइने जो दिल्ली के वरिष्ठ  ips अधिकारी तजेंद्र सिंह लूथरा  के प्रथम काव्य संग्रह --अस्सी घाट का बांसूरी वाला -- से ली गयी हैं ...स्रोत ...इंडिया टुडे 

ढूँढोगे तो सन्दर्भ भी मिल जायेंगे मेरी कविताओं के 
निकालोगे अर्थ 
तो निकल आएंगे मेरे प्रतीकों के
कोशिश करोगे तो पहचान ही लोगे मेरे बिम्बों को  
पर क्या फायदा 
मुझे कहने दो ये बाते 
लुके छिपे ढंग से !
                 

Sunday, March 18, 2012

.परीक्षा फल

परीक्षा  फल  के भय से आदमी को जीवन भर मुक्ति नहीं मिलती ,ऐसा मसूस होता है  जब अपने बच्चो का परीक्षा  फल  देखने उनके स्कूल जाता हूँ !वही भय और बेचैनी  महसूस  करता हूँ !कल ये भय अपने लिए था आज बच्चो के लिए है और इस प्रकार लगता है की उम्र भर रहेगा !..........आज जाना है स्कूल .....

BRAVO - SACHIN

कल की 52 रनों की पारी ने सचिन के आलोचकों को एक बार फिर से जवाब दे दिया है !और आज उनके खिलाफ ज्यादा कुछ दिख भी नहीं रहा है !पता नहीं कुछ बुध्धिजीवी ऐसी प्रतिक्रिया देने में क्यों लगे है मानो सचिन ने 100 शतक बंगलादेश के खिलाफ ही लगाये है !........मैं हैरान रह जाता हूँ कि....कैसे 22 सालो तक देश का परचम बुलंद कर भी कोई  देश भक्त नहीं बन पाता, कोई घर में टीवी पर मैच देख कर ही देश भक्त बन जाता है ! क्रिकेट कि ऐसी विलक्षण योग्यता को मेरा सलाम ! 

Friday, March 16, 2012

घटिया पत्रकारिता

कल स्टार न्यूज़ पर घटिया पत्रकारिता देखने को मिली ,जब उसके दो होनहार पत्रकार इतने उत्तेजित दिखे मानो वो विनोद काम्बली और सबा करीम के मुह में उंगली डालकर बस एक ही बात कहलवाना चाह रहे थे... कि सचिन कि धीमी बल्लेबाजी ही भारत कि हार का कारण बनी !कोई उन गधो से ये पूछे कि क्या दोनों छोर से  सचिन ही बैटिंग  रहे थे! २९० का स्कोर क्या कम था जो हमारे गेंदबाज बचा नहीं सके !ऐसा लगा मानो  ये घटिया पत्रकार एक महानआदमी की महान उपलब्धि पर कीचड़ उछाल कर अपनी बची खुची  होली मना रहे थे !

Wednesday, March 14, 2012

कभी कभी ऐसा होता है

इंडिया  टुडे  पर पढ़ा देश के अरबपति वारिसो के बारे में  आप भी रूबरु हो लीजिये
               नाम                उम्र             समूह                              मार्केट पूँजी
१. आदित्य बर्मन          ३२ वर्ष          डाबर                             18000  करोड़
२.करण अदानी            २४ वर्ष          अदानी                           82800  करोड़
३.राखी कपूर                27 वर्ष           येसबैंक                         12000 करोड़
४.उपासना कमिनेनी    25 वर्ष        अपोलो अस्पताल                7700 करोड़
५. सिद्धार्थ माल्या        २४ वर्ष        यु बी                                 22000 करोड़
६. आदित्य मित्तल       35  वर्ष       अर्सेल्लर मित्तल                  162000 करोड़

    इनके बारे में पढ़ा अपने बारे में जाना -------
७.  ब्रजेश कुमार           ३८ वर्ष        मार्बल हाउस        कुल जमा पूंजी -- १६२८७८ रुपये मात्र

 कभी कभी  ऐसा होता है दुसरो के बारे में पढ़ कर अपने बारे में पता चल जाता है !

Saturday, March 3, 2012

रिमोट का सुख

मनुष्य स्वाभाव से ही रोऊ प्राणी है ,उसे तो   बस रोने का बहाना चाहिए !आप आश्चर्य करेंगे की कैसे छोटी छोटी चीजे जीवन में दुःख का कारण बन  जाती हैं !आजकल मैं दुखी हूँ कि मेरे नसीब में रिमोट का सुख नहीं है !आप हँसिये पर मेरा दर्द भी महसूस कीजिये,रिमोट कोई साधारण सी चीज  नहीं रही अब!मैंने ये हमेशा ये महसूस किया है की यदि टीवी देखते समय रिमोट आपके हाथ में नहीं है तो आप दुनिया के सबसे बेवकूफ आदमी है !आप देखना कुछ चाहते है और रिमोटी,अर्थात रिमोट वाला व्यक्ति आप को कुछ और दिखाता रहता है !अगर रिमोटी confujed है की उसे क्या देखना है तो फिर आपका भगवान्  ही  मालिक  है,क्यूकि हर मिनट वह बोका रिमोटी चैनल बदल देता है और आप बंदरो की तरह इस चैनल से उस चैनल पर गुलाटी मारते रह जाते है ! इस लिए टीवी तभी देखे जब रिमोट आपके हाथ में हो !


मेरी समस्या कुछ अलग है !मेरी भोजनदाता प्रिय पत्नी ने दस वर्ष पूर्व वचन लिया था की जानू कम से कम रात का भोजन टीवी देखते साथ ही करेंगे !वचन देते समय मैंने ये कब सोचा था कि जानू कह कर मेरी जान निकालने का प्रबंध हो रहा है !तब जिस आग्रह में मुझे प्यार दिखाई दिया था आज उसमे घोर यातना दिखाई देती है !साहब !रिमोट छोडती ही नहीं और बलात लेने का साहस मैं जुटा नहीं पाता क्योंकि एक तो वचनबद्ध  दूसरा हंगामे का भय और तीसरा भोजन  जाना तय!तो खतरा उठाने के बजाय मै बोका मानुष कि तरह टीवी देखते रहना ही पसंद करता हूँ !और आनंद लेता हूँ रिमोट पर पत्नी के पियानो प्रदर्शन का ! क्रूर यातना से भरे होते  है मेरे दैनिक जीवन के ये  दो घंटे! गुजरता रहता हूँ कई सीरियलों में से एकसाथ और इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ कि .........................


....................नारी अब महान नहीं रही शायद .............ऐसा टीवी सीरियल बताते है! हर तरफ षड़यंत्र  करती नारी है ! माँ बेटे के खिलाफ ,पत्नी पति के खिलाफ ,बहन भाई के खिलाफ ,नारी हर जगह षड़यंत्र     कर रही है और घोर  आश्चर्य पुरुष पात्र नाच रहे है उनके इशारों पर! कैसा साहित्य लिखा जा रहा है,कैसे कैसे पात्र गढे जा रहे हैं!मानो हमारे नैतिक मूल्यों पर कर्फू लगा कर कहानियो में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया है ! पर आज कि नारी खुश है अपनी आजाद और बिंदास छवि को देख कर !ऐसा मैं इसलिए कह पा रहा हूँ कि कभी इन सीरियलों के विरुद्ध मैंने किसी नारी के विरोध के स्वर नहीं  सुने,उलटे इन सीरियलों के प्रति उनकी दीवानगी मुझे बेचैन कर देती है !


लेखक होना तो बड़ी जिम्मेदारी का कम है ,उसे अपनी अगली पीढ़ी के लिए ऐसे साहित्य का सृजन करना होता है जो उनमे नैतिकता के बीज बो सके !पर इन सीरियलों को देख कर मुझे ऐसा लगता है की लेखको को समाज को दूषित करने के लिए वैम्पो  को तैयार करने के मिशन पर लगाया गया है!
हमारी महान नारी दम तोड़ रही है ,पर आज की नारी इसके लिए चिंतित नहीं !मुझे भी  इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए !जिसके चरित्र का हनन हो रहा है आवाज भी उसे ही उठानी चाहिए !ऐसा लगता है आज के लेखक अपने निर्माता और निर्देशक के रिमोट से नियंत्रित होरहे है !


इसलिए कहता हूँ किआप रिमोट को हलके में नहीं ले सकते रिमोट राजा के दंड कि तरह है शक्ति का प्रतीकऔर मिलेगा भी शक्तिशाली हाथो में !नारी शक्ति के हाथो में !जिसके हाथ रिमोट दिखे समझिये वही घर का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है!


बच्चो के लिए रिमोट वाली कार बनाने वाले ने कब सोचा था कि एक दिन रिमोट से सरकार भी चलायी जा सकेगी और घोर आश्चर्य उसका रिमोट भी किसी नारी के ही हाथो में होगा !मेरा विश्वास  करे मेरी बाते बेतुकी नहीं है आने वाला समय रिमोट का है अब आदमी कि सम्पन्नता महंगे मोबाइल और ज्वेलरी  से नहीं रिमोट से तय होगी कि किसके पास कितने रिमोट है और कहाँ कहाँ के !मै चिंतित भी इसी लिए हूँ कि सबकुछ  होते हुए भी  मेरे नसीब में रिमोट का सुख नहीं है !   
                                                                                                                            ब्रजेश 
      

Tuesday, February 14, 2012

valentine special.......... मेरा वाला गुलाब...........

गुलाब के साथ मेरा   ३६ का आंकड़ा रहा है , ऐसा पूरे विश्वास के साथ इसलिए कह रहा हूँ की इतने valentine बीत गए कभी मेरे लिए कोई गुलाब नहीं आया और न ही मैं कभी किसी के लिए खरीद पाया ,दोनों ही सूरत में हथेलिया गुलाब से मरहूम ही रही !ढाई अक्षर का पिद्दी सा शब्द प्रेम कितना जटिल है मैं कभी समझ ही नहीं पाया !पहले तो ये सुनिश्चित करना ही मुश्किल काम है की प्रेम हुआ भी या नहीं हुआ तो एकतरफा है या दो तरफ़ा,  दोतरफा है या बहुतरफा!बहुतरफा है तो बड़ी समस्या है यहाँ से प्रेम राष्ट्रीय समस्या के रूप में दिखाई देने लगता है!

युवा प्रेमी लगा रहे है चक्कर पे चक्कर  जला रहे है पेट्रोल पे पेट्रोल !सरकार को एक कानून बना देना चाहिए की प्रेम के कार्य में जो पेट्रोल खर्च करता पाया जायेगा उसे ३ महीने की सजा ! भाई चक्कर ही काटना है तो पैदल काटो राष्ट्र हित भी सुरक्षित  रहेगा स्वास्थ भी  उत्तम बना रहेगा, पैदल चलने से 

मैं तो कहता हूँ की आय और संपत्ति की घोषणा की तरह प्रेम कीभी घोषणा कर दी जानी चाहिए !भ्रम ख़त्म होगा !एक अनार के सौ बीमार में से निन्यानवे को बचाया जा सकेगा, फिजूलखर्ची से !जिसका प्रेम वही खर्च करे दूसरा क्यों समय व्यर्थ करे !पर अफ़सोस प्रेम को हमारे यहाँ आदर प्राप्त ही नहीं है पुत्र को हो जाये तो पिता विलेन ,बहन को हो जाये तो भाई की लाठी पति को हो जाये  तो तौबा  तौबा सोच कर भी डर लगता है!मैंने हमेशा महसूस किया है की  इस ब्रह्माण्ड में परम पिता परमेश्वर के बाद पत्नी ही ऐसी सर्व शक्तिमान है जो हर जगह मौजूद है और मुझे देख रही है परम पिता दयालु है माफ़ कर देगा एक्शन नहीं लेगा पर  पत्नी जी के विषय में मै ऐसा नहीं  कह सकता !त्वरित कार्यवाही अवश्यम्भावी है,उसके कहर से इश्वेर  बचाए! प्रेम  तो  एक साहसिक कार्य है और पत्नी के रहते साह्स बटोर पाना मेरे जैसो के लिए जरा मुश्किल कार्य है !नतीजन प्रेम की चिंगारी फूटती है और अगले ही  पल फ़ुस हो जाती है!

मेरे परम मित्र ने सुनाया की एक velentine  day पर अपनी पत्निके लिए गुलाब ले कर गए ,आदर सहित प्रस्तुत किया पत्नी ने कहा ---अलमारी में रख दीजिये ज्यादा प्यार दिखाने  की जरुरत नहीं ,  बेचारे मित्र का मुह ही बन गया !इस तरह एक ही झटके में गुलाब और valentine दोनो की हत्या कर दी गयी !हमने सबक लिया valintine  बनाने के लिए पत्नी सही पात्र नहीं है! स्कूल कालेज तो अब रहे नहीं लिहाजा सडको का ही सहारा है !

ऐसा लगता है मेरे  जीवन  में प्रेम   एक तरफ़ा  ही चलता रहेगा  !अब एक तरफ़ा प्यार को कितनी मान्यता है पता नहीं !पर प्रेम तो प्रेम है फिर एकतरफा हो या चौतरफा क्या फर्क पड़ता है !कोई आध्यात्म गुरु, प्रेम गुरु, प्रेम में बौराए मन को समझा नहीं सकता समझे भी कैसे ,प्रेम का संक्रमण होते ही सबसे पहले बुध्धि काम करना बंद कर देती है सोचने का अतिरिक्त प्रभार दिल के पास आ जाता है !अब नन्हा सा दिल धडके, खून साफ़ करे या सोचने का काम करे! नतीजन सब राम भरोसे चलने लगता है!

हलाकि प्रेम में अब काफी खुलापन आ गया है valentine  जैसे पर्व इसका प्रमाण है! पर अभी भी गुलाब आम आम आदमी की पहुँच से बहूत दूर है !एक और valentine बीत गया ,हथेलियाँ गुलाब से मरहूम ही है !यह चिंता का विषय है!राष्ट्रीय एकता के हित में  हमें प्रयास करना चाहिए की शिक्षा  के तरह प्रेम भी जन जन तक पहुंचे और कोई भी हथेली गुलाब को न तरसे !    




Monday, January 30, 2012

इत्तेफाकन एक ही समय में ,एक ही विषय पर दो गुनीजनो के विचार पढ़े .शायद हमारे जैसे युवा माता पिताओ के लिए काफी प्रेरक है आज की आक्रामक युवा पीढ़ी पर हम अपने सपने नहीं लाद सकते.मोहन श्रोत्रिय जी ने युवा पीढ़ी का बेबाक प्रश्न रखा है .........  Mohan Shrotriya
तीनों बच्चों-- दो बेटियों और एक बेटे-- ने कहा "पापा, आप अपने सपनों को हमसे पूरा क्यों करवाना चाहते हैं? आपने सपने देखे, अपने लिए, और पूरे हमसे करवाना चाहते हैं, यह ठीक नहीं है. हम नहीं कहते कि आपको सपने नहीं देखने चाहिए थे. देखते, और देखते, पर उन्हें पूरा करने का हौसला भी आपका ही होना चाहिए था. आप विफल रहे उन्हें पूरा करने में, और अधूरे सपनों की पोटली राख देना चाहते हैं हमारे कंधों पर. This is not fair. हर पीढ़ी को अपने सपने देखने चाहिए. यह हर आगे वाली पीढ़ी का अधिकार है. सपनों में वंश-कुल नहीं चलता. नहीं चलना चाहिए." इस संवाद के चारों पात्रों में, मैं कहीं नहीं हूं. संवाद वास्तविक है. ज़ाहिर है, बच्चे तो नहीं ही बताते मुझे. तो जो बचा, उसीने तो कहा होगा.

इसी सन्दर्भ में अंजू जी ने युवा पीढ़ी के साथ बेहतर ताल मेल बनाते बहुत ही सुंदर ढंग से लिखा है .......

नहीं मत झुकाओ अपने कंधे
हमारी आशाओं के बोझ तले
और मत चुनो पूर्वाग्रहों के मील के पत्थरों 
से सजी तयशुदा राहें
उठो और चुन लो खुद अपने रास्ते
जो दौड़ेंगे खुद मंजिल की ओर,
चाहो तो ले लो मशालें हमारे अनुभव की,
जो दिखाएंगी तुम्हे अंधेरों में भी रास्ते,

और दोनों को मिला के देखे तो युवा माता पिताओं के लिए यही सन्देश है की हम अपने बच्चो के  सपनो के हिसाब से खुद को तैयार करे उनके सपनो की मंजिल तक पहुचने  का मार्ग बनाये बड़े उदार हो केर उन्होंने लिखा है ...चाहो तो हमारे अनुभव की मशाल ले लो ............. युवा माता पिताओ के लिए  शायद यही महत्वपूर्ण उपलब्धि हो कि वो अपने बच्चो को अच्छे सपने देखने कि आदत डलवा सके ..........
         मेरा सौभाग्य  मुझे इतना सुंदर पढने को को प्राप्त हुआ          

Sunday, January 22, 2012

                                   आखिर मैंने पढ़ ही लिया  मोहन शोत्रिया जी की कविता --- ६३ बरस पहलेकी बात है ,डरते दुबुकते सुबुकते सुबुकते रुक रुक कर विराम लेकर .क्योंकि आसान   नहीं है इस कविता की तपिश से गुजरना . मैं फस गया हूँ भावनाओ के तूफ़ान में . एक एक कर याद आ रही है वो बाते जो कभी पढ़ा था या महसूस किया है  माँ के बारे में . जब छोटा था माँ से सुनता था एक कविता-- माँ फिर क्या होगा उसके बाद ........ उसकी अंतिम पंक्तिया .....मैंबूढी हो कर मर जाउंगी ..पूरी पंक्ति याद नहीं आरही है .पर तब भी इस लाइन से दिल  दहल उठता था जब इसके मायने पूरी तरह नहीं समझता था.कुछ भी तो नहीं बदला जब नासमझ था तब भी नकारता था जीवन के इस सत्य को आज भी  नकारता हूँ जब समझदारी  की  उम्र  से गुजर रहा हूँ ,कौन खोना चाहेगा जीवन की सबसे अनमोल चीज को .जीवन का एक सत्य है जिसके पास जो नहीं है उसका महत्व वहीसमझता है --चार बरस की उम्र में ऐसा रोया की फिर कभी रोया ही नहीं .....चौबीस घंटो में एक बार गुजरता है वो दृश्य मुसलसल बिला नागा .......६३ बरस से सहेज कर रखा है कवी ने उस दर्द को तो क्यों न डूबेगा उनकी कविता का हर  शब्द दर्द में. कितनी अनमोल है माँ ...याद आ रही है लीना जी की पंक्तिया ----  
               मेरे किसी पहने हुए कपडे में अटकी पड़ी रहेगी मेरी खुशबू
जिसे मेरे बच्चे पहन के सो जायेंगे
जब मुझे पास बुलाना चाहेंगे
मै उनके सपनो में आऊंगी
उन्हें सहलाने और उनके प्रश्नों का उत्तर देने
मै बची रहूंगी शायद कुछ घटनाओं में
लोगो की स्मृतियों में उनके जीवित रहने तक

अनंत यात्रा से भी वापस लौट कर आती है माँ हर समाधान लिए  कैसी मार्मिक पंक्तिया है  कैसा गहरा लगाव है माँ का बच्चे के साथ . संभवतः एक मात्र घटना जिसमे मूल तत्त्व बार बार आता है तत्त्व की  ओर .इस तरह की कविताये इम्तेहान लेती है पाठक के आँखों  का ,दिल की मजबूती का .... ये कविता सच से रूबरू कराती है पर मै नासमझ कवी की उन पंक्तियों का पूरा समर्थन करता हूँ .......... माँ मरनी नहीं चाहिए कभी भी किसी की भी 



  


                                          



      
  

Sunday, January 15, 2012

१५ जनवरी पटना का सबसे ठंडा दिन

कमबख्त सर्दी तो इस बार किसी सनकी गर्लफ्रेंड की तरह गले ही पड़  गयी है लौटती
है दो कदम पीछे ,फिर दुने वेग से वापस आकर लिपट जाती है, समझ नहीं आ रहा है की इससे पीछा कैसे छुडाऊ .दुबका रहता रजाई के आड़ में भोर तक , पर बकरे की माँ खैर  मनाये कब तक .घुसता हूँ  बाथरूम में मायूस थरथराते ,जैसे जाता है  स्कूल कोई बच्चा बडबडाते, निकालता हूँ भड़ास अपनी कमोड पर,पिरोता हूँ दर्द
कुछ शब्दों में तोड़मरोड़ कर,
                          सर्दियों में शायद ,
                          दुनिया का सबसे कठिन काम है
                           नहाना ,
                           जैसे  किसी बेसुरे को  पड़े
                           भरी महफ़िल में गाना,
                            पानी गर्म गुनगुना
                            जान तो बचाता है .
                            पर उससे पहले ,
                            कपडे उतारने का जोखिम ,
                             सामने आ जाता है,
                              बंद शावर  के नीचे
                               जगाता हूँ अपने
                              जमे हुए साहस को
                             बेसुरी आवाज में  
                              गा गा कर, और
                              इसतरह निकलता हूँ
                              योध्धाओ की तरह नहाकर .
उफ ये सर्दी .........

Friday, January 13, 2012

BHHOKH

मैं भूखा हूँ ,
भूख मिटाने को,
लिखता हूँ ,
फिर मिटा देता हूँ,
क्यूँकि
अपने लेखन में मुझे ही ,
नजर आते हैं खोट ,
भूख और बढ़ जाती है ,
दौड़ पड़ता हूँ
आसपास बहते
काव्य के सागर की ओर,
कुछ बूंदे भरता हूँ,
मुग्ध होता हूँ  पढ़ कर,
जो मेरी सोच से ऊपर ,
बहुत ऊपर है ,
लौटता हूँ और,
फाड़ देताहूँ
अपना ही गन्दा किया हुआ पेपर

सोचता हूँ एकांत में में ,
कैसे इन कवियों की सोच
ऊपर ,इतनी ऊपर
चली जाती है ,
गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध भी ,
छितिज के पार,
और जब पढो तो,
डूबता है आदमी
उतना ही नीचे
गहरे और गहरे
भावो के सागर में ,
सम्मोहित और जडवत

इस तरह
पूरा हो जाता है
न्यूटन की गति का तीसरा नियम
लिखने से पढने तक .

जैसे ,
डगमगा गया है
आत्मविश्वास मेरा ,
या ,जकड गया हूँ
उन पंक्तियों के सम्मोहन में यूँ
की इस स्तर के नीचे ,
अब कुछ भी भाता नहीं ,
शायद अब
जायका बदल गया है मेरा

इसलिए  लिखता हूँ ,
फिर  फाड़ देता हूँ,
अपना ही गन्दा किया हुआ पेपर .