उसकी उम्र महज तीन साल की थी ड्रम के पीछे खड़ा दिख भी नहीं रहा था ,पर ड्रम पर उसकी कलाइया बड़ी निपुणता के साथ जादू बिखेर रही थी ! उम्र -7 साल नन्ही सी बच्ची जिसे दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती ,बिजली की फुर्ती से नाच रही थी !....अद्बुत अद्भुत- इंडिया गोट टैलेंट - के मंच पर जब भी ऐसी प्रतिभाओ से रूबरू होता हू एक हूक सी उठती है जब महसूस होता है 40 साल बाद भी मैं कलाविहीन ही हूँ !इन नन्हे फ़नकारो की जादूगरी देख कर एक ओर जहा फक्र होता है वही चुल्लू भर पानी में डूब मरने की इच्छा भी जन्म लेती है !पर हमारे देश में चुल्लू भर पानी इतना सहज मयस्सर नहीं है !सोचिये अगर सहज मयस्सर होती तो क्या अबतक भ्रष्ट और पतित नेताओं की जमात डूब नहीं चुकी होती !दुनिया संवेदनहीन लोगो से मुक्त नहीं हो गयी होती !
बचपन से ही मेरी इच्छा बाँसुरी बजाने में रही कई बार बाँसुरी खरीदी ,फूँक मार मार के फेफड़े फुला लिए पर बाँसुरी कमबख्त बजी नहीं !इस प्रतिभा का मैं निर्धन ही साबित हुआ !बाँसुरी तो बाँसुरी है सीखने के लिए कठोर साधना करनी पड़ती है ,यह कोई सत्ता नहीं जो हाथ आते ही व्यक्ति को फरेब के सारे सरगम सिखा देती है मानो इस प्रतिभा का वह जन्मजात धनि रहा हो !सत्ता पाते ही व्यक्ति गबन की दुनिया में पैर पसारने लगता है और जल्द ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेता है!क्या पक्ष क्या विपक्ष दोनों ओर असीमित प्रतिभा के दर्शन होते है !मैं ही मुर्ख रहा जो बाँसुरी बजाने की सोची सत्ता बजाता तो अब तक मेरी प्रतिभा निखर कर देश भर में मीडिया का भरन पोषण कर रही होती !
पर यहाँ तो अपना भरण पोषण ही अत्यन्त कठिन हो चला है कठिन क्यों न हो आखिर हम 100 करोड़ लोग दिन रात मेहनत कर कुछ मुठ्ठी भर मंत्रियो और नौकरशाहों की अय्याशियों के लिए धन उपलब्ध कराने में जो लगे हुए है! मेहनत मशक्कत करने से हमारे खून का रंग पीला और उनके खून का रंग नीला होता जा रहा है! हिन्दुस्तान के ये हुनरबाज बड़े ही सौभाग्यशाली है जो इनका सामना चुल्लू भर पानी से नहीं होता !मुझे तो कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है मानो चुल्लू भर पानी के देश से विलुप्त होने के पीछे इनका ही हाथ हो !
समस्या के जड़ में चुल्लू भर पानी ही है राष्ट्रहित में हमें इसे खोजना ही होगा,.......... मगर कहाँ??
बचपन से ही मेरी इच्छा बाँसुरी बजाने में रही कई बार बाँसुरी खरीदी ,फूँक मार मार के फेफड़े फुला लिए पर बाँसुरी कमबख्त बजी नहीं !इस प्रतिभा का मैं निर्धन ही साबित हुआ !बाँसुरी तो बाँसुरी है सीखने के लिए कठोर साधना करनी पड़ती है ,यह कोई सत्ता नहीं जो हाथ आते ही व्यक्ति को फरेब के सारे सरगम सिखा देती है मानो इस प्रतिभा का वह जन्मजात धनि रहा हो !सत्ता पाते ही व्यक्ति गबन की दुनिया में पैर पसारने लगता है और जल्द ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेता है!क्या पक्ष क्या विपक्ष दोनों ओर असीमित प्रतिभा के दर्शन होते है !मैं ही मुर्ख रहा जो बाँसुरी बजाने की सोची सत्ता बजाता तो अब तक मेरी प्रतिभा निखर कर देश भर में मीडिया का भरन पोषण कर रही होती !
पर यहाँ तो अपना भरण पोषण ही अत्यन्त कठिन हो चला है कठिन क्यों न हो आखिर हम 100 करोड़ लोग दिन रात मेहनत कर कुछ मुठ्ठी भर मंत्रियो और नौकरशाहों की अय्याशियों के लिए धन उपलब्ध कराने में जो लगे हुए है! मेहनत मशक्कत करने से हमारे खून का रंग पीला और उनके खून का रंग नीला होता जा रहा है! हिन्दुस्तान के ये हुनरबाज बड़े ही सौभाग्यशाली है जो इनका सामना चुल्लू भर पानी से नहीं होता !मुझे तो कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है मानो चुल्लू भर पानी के देश से विलुप्त होने के पीछे इनका ही हाथ हो !
समस्या के जड़ में चुल्लू भर पानी ही है राष्ट्रहित में हमें इसे खोजना ही होगा,.......... मगर कहाँ??
mujhe mila hai wo chullu bhar pani ka sroot.
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